Saturday, February 4, 2012

मेरा अँधेरा सूरज का मोहताज नहीं है ,

મારું અંધારું સુરજ્નું ઓશિયાળું નથી,
ને મારા ચરણને નથી કોઇ પગદંડીનો મોહ
હું સ્વયં પ્રગટું છું ને ચાલુ છું,
નિર્ધારિત રસ્તા વિહિન ધરતી પર.
ધરતી જેમ પોતાના હ્રદયપટ પર વરસાદને ઝીલે છે
તેમ હું
સમગ્રતાને મારી ભીતર ચેતનાની ભૂમિ ઉપર ઝીલું છું.
ત્યારે તેની મૃણ્મયી સુગંધ
મારા અસ્તિત્વના તારને ઝણઝણાવી દે છે
નાદના તાલે
અનંત કાળના ઓવારે
નૃત્ય કરી રહ્યુ છે આખુયે બ્રહ્માંડ 
કશુ યે સ્થિર નથી
કશુ યે જડ નથી
છે માત્ર
લાસ્ય અને તાંડવ
અદ્ભુત અને અભિન્ન.

યશોધરા પ્રીતિ
My darkness is not helpless of the sun
and my feet has no fascination of any path
I light myself and walk
on the earth without definite path.
As the earth catch the rain on its heart
Such as I catch the completeness
in my inner on the land of vitality
Then the fragrance of clay
jingle the chords  of mine own being
On rhythm of that sound
on the bank of endless time
The universe are dancing
Nothing is stable
Nothing is inanimate
There are
Lasya and Tandava
Wonderful and oneness!
_ Yasodhara Preeti
मेरा अँधेरा सूरज का मोहताज नहीं है ,
और मेरे चरणों को नहीं है कोई पगडण्डी का मोह,
मैं  स्वयं प्रगटती हूँ और चलती हूँ,
निर्धारित रास्ते  रहित जमी पर,
जिस तरह पृथ्वी अपने ह्रदय पट पर जिलती है बारिश,
उस तरह मैं जिलती हूँ समग्रता को,
मेरी भीतर चेतना की भूमि पर,
तब
पृथ्वी की मॄण्मयी  सुगंध 
मेरे अस्तित्व के तार को झनाझना देती है,
उस नाद के ताल पर,
अनंत काल के किनारे,
नृत्य कर रहा है सारा ब्रह्माण्ड,
कुछ स्थिर नहीं है.
कुछ जड़ नहीं है,
है केवल
लास्य और तांडव 
अद्भुत और अभिन्न ! 
यशोधरा प्रीति

8 comments:

  1. अद्भुत और अभिन्न !

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  2. बहुत गहन और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  3. Er. सत्यम शिवमji thankx

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  4. ખરે ખરે હદય ને સ્પર્શ કરે છે .

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  5. एक दार्शनिक रचना ......सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सत्य इस लास्य और तांडव में ही छुपा है. गुज़राती, अंग्रेज़ी और हिन्दी ....सम्प्रेषण का यह तरीका अच्छा लगा ......

    यूनीकोड के बजाय यदि हिंदी पिटारा टूल के गूगल ट्रांसलिटिरेशन में लिखे तो अक्षरों के लेखन में शुद्धता रहेगी. इसमें आप अन्य भारतीय भाषाएँ भी लिख सकेंगी.

    मंगल कामनाएं ......

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